एलआईसी की हिस्सेदारी बेचने की केंद्र की योजना संदेह पैदा करती है
एमटीएनएल और आईडीबीआई को प्रतीकात्मक उदाहरणों के रूप में उद्धृत किया
उन्मेष गुजराथी
स्प्राउट्स ब्रांड स्टोरी
कहानी तब शुरू हुई जब सरकार ने 100% सरकारी स्वामित्व वाली कॉर्पोरेट इकाई में 5% हिस्सेदारी बेचने के लिए अपनी आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) (Initial Public Offering (IPO) रोडशो शुरू किया.
स्प्राउट्स की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) (Sprouts’ Special Investigation Team (SIT) को पता चला कि पूरे भारत के निवेशक डरे हुए थे कि सरकार के लक्ष्यों और शेयरधारकों की इक्विटी हिस्सेदारी के बीच हितों का टकराव शेयरधारकों के लिए बड़े नुकसान का कारण बन सकता है.
एसआईटी को आगे पता चला कि संभावित शेयरधारकों की राय थी कि एलआईसी में मेजर हिस्सेदारी रखने वाली सरकार के आधार पर, यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) (public sector undertaking (PSU) को अन्य सरकारी कॉरपोरेट संस्थाओं से घाटे को अवशोषित करने को मजबूर करने के लिए अपना प्रभाव डाल सकती है.
जैसा कि हमारी एसआईटी ने इन्वेस्टर कम्युनिटी से बात की, उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में एमटीएनएल (MTNL) और आईडीबीआई (IDBI) के उदाहरणों का हवाला दिया.
यह कहते हुए कि यदि इस प्रवृत्ति को जारी रखने की अनुमति दी गई, तो नकदी से भरपूर एलआईसी जल्द ही एक और घाटे वाली इकाई में बदल सकती है. निवेश टीम ने आईपीओ शेयरों (IPO shares) को खरीदने की बुद्धिमत्ता पर गंभीर संदेह व्यक्त किया.
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एक निवेशक ने एसआईटी को बताया, “यदि आगे चलकर सरकारें घाटे में चल रही वित्तीय इकाइयों और संस्थाओं को डूबने से बचाने के लिए एक बफर के रूप में एलआईसी का उपयोग करना जारी रखती हैं, तो हम निवेशक के रूप में खराब स्टॉक ऑप्शन्स (bad stock options) में फंस जाएंगे.”
हमारी एसआईटी को यह भी पता चला कि सरकार एलआईसी के आईपीओ की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग करके अपने वार्षिक राजकोषीय घाटे को कवर करने की योजना बना रही है.
हालांकि, यह कदम अपने आप में राहत नहीं ला सकता है क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार और वित्त मंत्रालय (ministry of finance) निवेशकों और बाजार की ताकतों को उनके द्वारा व्यक्त की गई आशंकाओं को दूर करने में कितने सक्षम हैं.